अध्याय - 3हरि और हाइड्रोजन के कुल 51 लक्षण मिलते है। लक्षण-संख्या =03/51 [ यदि शास्त्र और साइंस दोनों सत्य है तो यह भी सत्य है कि भगवान (हरि-हाइड्रोजन ) के तीन प्रमुख रुप है जो निम्न है । (1) ब्रह्मा (प्रोटियम= 1H1) (2) विष्णु (ड्यूटेरियम = 1H2 ) (3) शिव (ट्राइटेरियम= 1H3) हरि-हाइड्रोजन का प्रोटियम-ब्रह्मा वाला रुप ही जगत और जीव दोनों का रचयिता है। इस अध्याय में केवल जगत-रचना (जीव-रचना नहीं) वाले गुणों को दिखाया गया है। इसके अगले अध्याय अर्थात 04/51 में जीव-रचना को दिखाया गया है। ] नोट : देवता और भगवान में फर्क होता है। | |
बहुत लोगों का मानना होता है कि केवल भगवान अकेले ही
जगत की रचना कर दिये है लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। इस जगत की रचना में भगवान (हाइड्रोजन) और उनकी माया (आक्सीजन/नाइट्रोजन/कार्बन) दोनों का योगदान हैं । ईश्वर और माया द्वारा ब्रह्मांड-रचना
के संदर्भ में सुंदरकांड में आया है कि :
सुनु रावन ब्रह्मांड-निकाया
पाइ जासु बल बिरचति माया
॥
जिनका बल पाकर माया संपूर्ण ब्रह्मांडों के समूहों की
रचना करती है।
ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया
रोम
रोम प्रति बेद कहै।
वेद कहते हैं कि तुम्हारे प्रत्येक रोम में माया के रचे हुए अनेकों ब्रह्माण्डों के समूह हैं। (बालकांड, श्रीरामस्तुति)
जिस प्रकार एक ही ईश्वर के अनेकों रुप है, ठीक उसी
प्रकार माया के भी अनेकों रुप है। परमात्मा के हरि-हाइड्रोजन
रुप के लिये माया का नाम आक्सीजन, नाइट्रोजन और कार्बन है। ईश्वर (हाइड्रोजन) और उनकी माया के आकर्षण (प्रेम) के बल पर ही इस जगत की रचना हुई है। हरि-हाइड्रोजन
समान्यतः धनात्मक गुण वाले होते है और इसलिये ये आत्मिक-धन (अध्यात्मिक-गुण) को बढ़ाते है। इसके विपरीत इलेक्ट्रान, आक्सीजन, नाइट्रोजन और
कार्बन ऋणात्मक गुण वाले होते है ।
Ø जब हरि-हाइड्रोजन
आक्सीजन रुपी माया के साथ आकर्षण करते है तो जल (H2O) रुपी जीवन का निर्माण होता है। इस जल की रचना और इसके
दिव्य गुण में मूलकारक हरि-हाइड्रोजन ही है। भगवान ने गीता में
अपने आप को जल से संबोधित किया है।
Ø जब हरि-हाइड्रोजन
नाइट्रोजन रुपी माया के साथ आकर्षित होते है तो पृथ्वी की एक व्यापक गंधयुक्त वायु
अमोनिया का निर्माण (NH3) होता है। पृथ्वी को गंध प्रदान करने वाली इस वायु की
रचना और गुण के मूलकारक भी हरि-हाइड्रोजन ही है। गीता में भगवान ने
खुद को एक पवित्र-वायु भी बताया है। पवित्र और सुगंधित दो शब्द है।
Ø जब हरि-हाइड्रोजन कार्बन
रुपी माया के साथ आकर्षित होते है तो मेथेन (CH4)और हाइड्रोकार्बन आदि रुपी यौगिक का जन्म होता है। उनका
यह रुप आग प्रकट करता है। गीता में भगवान ने खुद को अग्नि कहा है। माया, के ये
तीनों रुप हरि-हाइड्रोजन को पहचान करने और प्राप्त करने दोनों में
बाधा उत्पन्न करती है।
पृथ्वी से बड़े चार ग्रहों को गैसीय-ग्रह कहा
जाता है। इन ग्रहों से लाखों गुना बड़ा सूर्य है। सौरमंडल सूर्य से भी अति बड़ा है।
हमारी मंदाकिनी सौरमंडल से भी अतिबड़ी है। ऐसी अनेकों अनेकों
मंदाकिनियों से मिलाकर ब्रह्मांड बना है।
अपनी मंदाकिनी (आकाश-गंगा) का 98% भाग तारों से भरा है और शेष (2% में) रिक्त अंतरिक्ष
में भी हरि-हाइड्रोजन नामक वायु और उनकी माया द्वारा रचित संसार ही
अल्प मात्रा में विचरण करते रहते है। सूर्य और तारों के लगभग संपूर्ण भाग की रचना हरि-हाइड्रोजन
द्वारा हुई है। सूर्य में सौरमंडल का 99.9% भाग निहित है। सौरमंडल में सौर-पवन
के रुप में प्रोटोन और ईलेक्ट्रान (हाइड्रोजन के दो भाग) ही विराजमान होते है। इस सूर्य के लगभग संपूर्ण
भाग (91% हाइड्रोजन +
हीलियम-सन्यासी + माया) की रचना हरि-हाइड्रोजन द्वारा
हुई है और शेष अल्प भाग की रचना सन्त (सन्यासी) हीलियम
द्वारा हुई है। इसमें माया का प्रभाव 1% से भी कम होने का अनुमान है।
सूर्य के अतिरिक्त सौरमंडल के 9 ग्रहों का
अधिकांश भाग (99%) की रचना भी हरि-हाइड्रोजन द्वारा ही हुई है। अकार
के अनुसार पृथ्वी से बड़े चार ग्रह है जिनको गैसीय-ग्रह भी कहा
जाता है। ये चारों ग्रह क्रमशः वरुण, अरुण, शनि और बृहस्पति है। अरुण पृथ्वी से
63 गुना बड़ा, वरूण अरुण से भी बड़ा है, शनि ग्रह
पृथ्वी से 96 गुना बड़ा है और बृहस्पति-ग्रह तो सबसे
बड़ा है। बृहस्पति-ग्रह शेष सभी ग्रहों के योग के 2.5 गुना है। हरि-हाइड्रोजन और उनकी प्रकृति (आक्सीजन, नाइट्रोजन
आदि) मिलकर इन सभी पिंडों की रचना करते है।
अरुण के 83%, वरूण के 80%, शनि के 96% और जुपिटर के 89%
भागों की रचना, केवल हरि-हाइड्रोजन
नामक वायु (H2) से ही
हुई है और शेष भागों की रचना उनकी माया के योग (अमोनिया, जल और मेथेन ) से हुई है। इस प्रकार साबित होता है कि सूर्य और तारों
के अतिरिक्त, ग्रह-मंडल
का भी 99% से अधिक भाग हरि-हाइड्रोजन और उनकी माया द्वारा रचा
गया है। यह वायु अल्प मात्रा में खुले अंतरिक्ष में भी विचरण करती है।
प्रोटियम-ब्रह्मा,
हाइड्रोजन के तीन रूपों में सबसे अधिक (99.985 %) तक पाये जाते है। इससे साबित होता है कि ग्रह, सूर्य और
तारों साहित मंदाकिनी रुपी अन्य जगतो (सृष्टियों) के रचयिता
प्रोटियम-ब्रह्मा ही होंगे क्योंकि इनकी प्रायिकता अधिक होगी ।
नोट :-
उपरोक्त सभी
आँकड़े लगभग मान के साथ प्रस्तुत किये गये है। ऐसा हो सकता है कि पुस्तक में कुछ आँकड़ों ( Related
with maths ) के
पहले ‘लगभग’ शब्द का प्रयोग भूलवस नहीं हो पाया
हो । इसके लिये हमें खेद है।
************** जय श्री राम ********
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