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अध्याय - 17हरि
और हाइड्रोजन के कुल 51 लक्षण मिलते है। लक्षण-संख्या
=17/51 [ यदि शास्त्र और साइंस दोनों सत्य
है तो यह भी सत्य है कि ईश्वर (हरि-हाइड्रोजन)
ही
सर्वशक्तिमान है। इनके ही शक्ति से सब
कुछ चल रहा
है। इस अध्याय में हरि-हाइड्रोजन की शक्ति का गुणगान, ब्रह्मांड-स्तर पर किया गया है। हरि-हाइड्रोजन ही अपनी शक्ति से पृथ्वी-लोक सहित समस्त लोकों को चला रहे है। यहाँ पर हरि-हाइड्रोजन के नाभिकीय-संलयन शक्ति का गुणगान किया गया है। ] |
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परमात्मा ही
सम्पूर्ण सृष्टि को चला रहा है। भगवान इस जगत को चलाने के लिये अलग-अलग रूपों
में विराजमान रहते है। प्रभु अलग-अलग कार्यों के लिये वह अपने अलग-अलग शक्तियों को प्रयोग में लाते है।
रावण को मारने के लिये राम, कंश को मारने के लिये श्रीकृष्ण बन जाते है। उस ईश्वर
के अनेकों रुप है। विज्ञान के अनुसार ब्रह्मांड को उर्जा देने का कार्य भगवान अपने
हाइड्रोजन रुप द्वारा करते है ।
जिस चीज को व्यक्त करने के लिये साइंस की
भाषा में बार-बार उर्जा का प्रयोग किया जाता है, उसी चीज को व्यक्त करने के लिये शास्त्र की
भाषा में शक्ति शब्द का प्रयोग बार-बार किया गया है। विज्ञान की पुस्तक में शक्ति
और उर्जा दो दो पृथक-पृथक राशियाँ है जबकि शास्त्र की भाषा में यह दोनों समकक्ष
शब्द है। शास्त्र और साइंस को मिश्रित करने वाली इस पुस्तक में उर्जा शब्द के
स्थान पर शक्ति शब्द का प्रयोग शास्त्रीय पक्ष के सुगमता के लिये किया गया है।
.उस ईश्वर की कुछ प्रमुख शक्तियों को निम्नलिखित
अध्यायों के माध्यम से दिखाया गया है ।
(a)
नाभिकीय-शक्ति : हरि-हाइड्रोजन की नाभिकीय-शक्ति जिसके माध्यम से सम्पूर्ण जगत प्रकाशमान और चलायमान है।
यह शक्ति ब्रह्मांड-स्तर पर कार्य करती है। इसको गुण संख्या 17/51 में दिखाया गया है ।
(b)
रसायनिक-शक्ति :- हरि-हाइड्रोजन की
रसायनिक-शक्ति जिसके
माध्यम से केवल पृथ्वी-लोक को चलाया जा रहा है। यह शक्ति पृथ्वी-स्तर पर
कार्य करती है। इसको गुण संख्या 18/51
में दिखाया गया है ।
(c)
विद्युत-शक्ति : हाइड्रोजन की विद्युत-शक्ति जिसके माध्यम से केवल पृथ्वी-लोक को चलाया जा रहा है। यह शक्ति
पृथ्वी-स्तर पर
कार्य करती है। इसको गुण संख्या 19/51
में दिखाया गया है ।
(d)
चेतना-शक्ति :हरि-हाइड्रोजन की चेतना-शक्ति जिसके माध्यम से केवल जीवित-प्राणियों को चलाया जा रहा है। यह
शक्ति पृथ्वी-स्तर पर कार्य करती है। इसको गुण संख्या 20/51 में दिखाया गया है ।
(e)
अर्थिक-शक्ति : हरि-हाइड्रोजन की
अर्थिक-शक्ति जिसके
माध्यम से केवल समाजिक-जीवन को चलाया जा रहा है। यह शक्ति पृथ्वी-स्तर पर
कार्य करती है। इसको गुण संख्या 21/51
में दिखाया गया है ।
इस अध्याय (17/51)
में परमात्मा के विश्वव्यापी उन शक्तियों का गुणगान
किया गया है जो ब्रह्मांड-स्तर पर कार्य करती है। इस संदर्भ में श्रीरामचरितमानस
और गीता में आया है कि
मरुत कोटि सत बिपुल
बल रबि सत कोटि प्रकाश ।
ससि सत कोटि सुसीतल समन सकल भव
त्रास ॥
अरबों पवन के समान उनमें महान बल है और अरबों सूर्यों के समान प्रकाश
है ।] [उत्तरकांड दोहा-91क]
अथवा बहुनैतेन किं
ज्ञातेन
तवार्जुन ।
विष्टभ्याहमिदं
कृत्स्नमें-कांशेन
स्थितो जगत् ॥
हे अर्जुन! इस बहुत को
जानने से तेरा क्या प्रायोजन है। मैं इस संपूर्ण जगत
को अपनी
योगशक्ति के एक अंश मात्र से धारण करके स्थित हूँ।
[ गीता
10.42 ]
श्रीरामचरितमानस
और गीता से ली गयी उपरोक्त पंक्तियों में परमात्मा के दो रूपों क्रमशः राम और कृष्ण
की शक्तियों का बखान विश्वस्तर पर किया गया है और यह बताया गया है कि वो सूर्य
सहित अरबों तारों को शक्ति प्रदान करने वाले है। परमात्मा का जो रूप मानव-शरीर के रुप
में आया था, उसके भी शरीर
का ताप भी 97 डिग्री फारेनहाइट रहा होगा और वजन भी एक समान्य मानव का
रहा होगा । यदि ताप अधिक (सूर्य के बराबर) होता तो दशरथ जी उनकों गोद में लेकर नहीं खिला पाते ।
फिर श्रीरामचरितमानस और गीता से ली गयी उपरोक्त पंक्तियों में क्यों कहा गया है कि वो परमात्मा सूर्य सहित अरबों
तारों को शक्ति प्रदान करने वाले है ? इसका वास्तविक सत्य यह है कि दशरथ-नंदन और यशोदा-नंदन दोंनो
ही परम-परमात्मा के
नर-शरीर रुप थे
लेकिन उनका ही विश्व के अणु वाला रुप हाइड्रोजन-रुप ही सूर्य सहित अरबों तारों को
प्रकाश दे रहा है। परमात्मा का हाइड्रोजन वाला रुप ही सूर्य और अरबों तारों की
रचना करता है। सूर्य और तारे कुछ और नहीं बल्कि ( लगभग 91% परमाणुओं की संख्या के अनुसार ) तक साक्षात
हरि-हाइड्रोजन के
ही रुप है और शेष (8.5%) संत हिलियम है। गीता की उपरोक्त पंक्तियों में इन सबको
अंश मात्र बताया गया है न कि पूर्ण रुप । ईश्वर के हरि-हाइड्रोजन रुप से अनेकों पिंडों की
रचना हुई है, उनमें से ही
कुछ अंश से सूर्य की रचना हुई है। सूर्य को उर्जा का आधार माना जाता है। सूर्य में
दो प्रकार की विशेष शक्तियां है जो सभी पृथ्वी-लोक सहित समस्त लोकों को चला रही
हैं।
1.द्रव्यमान
के कारण गुरुत्वीय-शक्ति
2.नाभिकीय-संगलयन
शक्ति
सौरमंडल का 99.9% से अधिक भाग सूर्य में निहित है और इस सूर्य को सबसे
अधिक द्रव्यमान (लगभग 91%
संख्या के अनुसार और 71-74% द्रव्यमान के अनुसार ) प्रदान वाले मूलकारक हरि-हाइड्रोजन ही है। इस द्रव्यमान के
कारण ही पृथ्वी सहित अन्य लोकों (ग्रह) को चलाया जा रहा है। ये हरि-हाइड्रोजन अपने अधिकतम द्रव्यमान
शक्ति के कारण, पृथ्वी सहित
अन्य लोकों को चला रहा है जिसके फलस्वरुप दिन-रात हो रहे है और ऋतुए बदल रही है। हरि-हाइड्रोजन ( सूर्य का 71% द्रव्यमान ) और पृथ्वी के
बीच का आकर्षण-बल ही पृथ्वी को घूमने के लिये आवश्यक अभिकेंद्र बल
प्रदान करता है। इसको निम्न सूत्र के माध्यम से समझा जा सकता है ।
F = G MMe /R2
= MeV2/R
.
जहां : F = अभिकेंद्र-बल, G = सार्वत्रिक-नियतांक, V= वेग, M= द्रव्यमान आदि । भगवान हाइड्रोजन के विशालकाय सूर्य रुप
की गुरुत्वीय शक्ति के कारण पृथ्वी और सभी पिंड घूम रहे है और दिन रात हो रहा है।
सूर्य की दूसरी
शक्ति का नाम नाभिकीय-संलयनशक्ति है। हरि-हाइड्रोजन ही इस सूर्य को
अपनी नाभिकीय-संलयन क्रिया द्वारा
(एक संलयन
द्वारा 17.6 MeV) शक्ति प्रदान करते हैं । इस क्रिया में
दो या दो से अधिक छोटे-छोटे नाभिक मिलकर एक बड़े नाभिक का निर्माण करते है। इस
प्रक्रिया में द्रव्यमान का जो क्षति होता वो E
= △mC2 के अनुसार उर्जा (शक्ति) में बदल जाती
है। यही उर्जा ऊष्मा और प्रकाश के रुप में पृथ्वी सहित तमाम पिंडों पर पहुँचती है। शास्त्र और साइंस दोनों ने इस
बात को माना है कि हरि-हाइड्रोजन ही अपनी नाभिकीय-शक्ति से शत कोटि सूर्य को तपा
रहे है।
इस प्रकार इस अध्याय में परमात्मा के हरि-हाइड्रोजन रूप के विश्वव्यापी शक्तियों का गुणगान किया गया और अब अगले अध्याय में पृथ्वी-लोक की शक्तियों का गुणगान किया गया है ।
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श्री राम *****************
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