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अध्याय - 8हरि और हाइड्रोजन के कुल 51 लक्षण मिलते है। लक्षण-संख्या =08/51 [ यदि शास्त्र और साइंस दोनों सत्य है तो यह भी सत्य है कि भगवान (हरि-हाइड्रोजन) ही पंचभूत के रचयिता है। यहाँ पर जल नामक भूत पदार्थ को दिखाया गया है। ]
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क्षिति, जल, गगन, पावक और समीर को पंच भूत कहा गया है।
जल पाँच भूत-पदार्थों में
से एक है। इसका रसायनिक सूत्र H2O होता है। हरि-हाइड्रोजन और
उनकी माया आक्सीजन मिलकर ही जल रुपी संसार
(जीवन) की रचना करते है। विष्णु-सहस्र्नाम के
अनुसार, भगवान के 1000 नामों में से एक नाम भूतादि भी होता
जिसका अर्थ पंचभूतो का रचयिता होता है। भगवान शब्द पाँच अक्षरों से मिलकर बना है।
भगवान = भ + ग + व + आ + न
1. भ = भूमि (पृथ्वी) 2. ग = गगन 3. व = वायु 4. आ = आग 5. न = नीर
जल को पाँच भूत-पदार्थों में से एक
माना जाता है। इसका रसायनिक सूत्र H2O होता है। हरि-हाइड्रोजन और
उनकी माया आक्सीजन मिलकर ही जल रुपी संसार (जीवन) की रचना करते
है। जल का अणुभार 18 होता है जिसमें सोलह आक्सीजन का और दो (2X1= 2) हाइड्रोजन का होता है। भार के
अनुसार देखने पर आक्सीजन ज्यादा है। आक्सीजन रुपी माया के प्रभाव में भ्रमित लोगों
के मन में यह तर्क उत्पन्न हो जाता है कि जब आक्सीजन का अणुभार
ज्यादा है तो आक्सीजन की प्राथमिकता दी जायेगी न कि हाइड्रोजन की । यहाँ पर भार का
महत्व न देकर आयतन का महत्व दिया जायेगा क्योंकि इसके निम्न कारण है।
i.
तरल (द्रव
और गैस) को आयतन के अनुसार मापा जाता है न कि तौला जाता है। आंखो
से देखकर आयतन का अंदाजा लगाया जा सकता है न कि भार का । यदि आयतन के
अनुसार देखा जाय तो NTP पर हाइड्रोजन ज्यादा स्थान घेरता है और आक्सीजन कम
स्थान घेरता है।
ii.
इस पुस्तक
में हरि-हाइड्रोजन का व्यक्तिकरण किया गया है इसलिये संख्या का
भी महत्व दिया गया है। संख्या और आयतन दोनों के अनुसार देखने पर जल के अणु की रचना
करने में सबसे अधिक योगदान, हरि-हाइड्रोजन का है और शेष उनकी माया
आक्सीजन का है ।
ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि केवल हरि-हाइड्रोजन
ही सब कुछ अर्थात सारा जगत और जीवों की रचना करते हैं बल्कि जगत-रचना
का यह कार्य अपनी माया (प्रकृति) के साथ मिलकर
करते है। इस विषय में गीता में आया है कि
अजोऽपि
सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि
सन्।
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय संभवाम्यात्ममायया ॥
सभी प्राणियों का ईश्वर होते हुए
भी
मैं,
अपनी प्रकृति को अधीन करके अपनी योगमाया से प्रकट
होता हूँ
||
[ गीता 4.6 ]
गीता से ली गयी उपरोक्त पंक्तियों में यह बताया गया है
कि वो (हरि-हाइड्रोजन) अपनी योगमाया
(आक्सीजन) को बस में करके, पृथ्वी पर (जल-रुप) पर अवतरित होते है। हरि-हाइड्रोजन हमेशा
गगन अर्थात आकाश की ओर (गगन
सदृश्यम) रहते है लेकिन पृथ्वी पर प्रकट होने के लिये आक्सीजन-माया
को बस में करना पड़ता है। निम्नलिखित समीकरण को ध्यानपूर्वक समझने की कोशिश कीजिए
।
2H2 (44.8
Lt) +
O2 (22.4Lt) = 2H2O (44.8 Lt)
इस समीकरण के अनुसार NTP
पर 2x22.4 = 44.8 लीटर हाइड्रोजन और 22.4 लीटर आक्सीजन मिलकर 44.8 लीटर
जल (भाप) और उर्जा बनाते है। शुरुआत में तो H2O का
यह अणु, भाप रुप (गैसीय
रुप) में ही प्रकट होता है जो बाद में ठंडा होकर जल बन जाता है।
जल की रचना में हरि-हाइड्रोजन की जितनी मात्रा (44.8 लीटर) के अनुसार ली जाती है, ठीक उतने ही मात्रा (44.8 लीटर) में जल (गैसीय-भाप) की रचना होती है। यदि संख्या के अनुसार भी देखा जाय तो
भी हरि-हाइड्रोजन ही जल के 66% भाग
का निर्माण करते है। इस सम्पूर्ण पुस्तक में
सारे आँकड़े संख्या और आयतन के अनुसार ही प्रस्तुत किये गये है। इसका कारण भी पुस्तक
में आगे दिया गया है। हरि-हाइड्रोजन
जल नामक भूत पदार्थ के मूल रचयिता होने के साथ-साथ जल नामक
पंचतत्व के उत्पति और इनके महागुण के मूलकारक भी है।
(a)
नियमानुसार दो गैस को मिलाकर बना यौगिक भी गैस ही होगा
लेकिन जल इस नियम के अपवाद में है क्योंकि जल-देव को हरि-हाइड्रोजन
का दिव्य-वरदान प्राप्त है। जल हाइड्रोजन और आक्सीजन नामक दो
गैसों से मिलकर बना है इसलिये नियमानुसार इसे भी एक गैस ही होना चाहिये फिर भी यह द्रव
अवस्था में पाया जाता है। हरि-हाइड्रोजन का हाइड्रोजन-बंध
के कारण ही जल द्रव अवस्था में पाया जाता है। इस हाइड्रोजन-बन्ध की
शक्ति द्वारा ही जल अपने तीनों रूपों में असानी से परिवर्तित हो जाता है। इस
परिवर्तन से ही जल-चक्र की घटना संपन्न होती है और जगत का संचालन होता है।
(b)
नियमानुसार कम अणु-भार वाले
यौगिक को गैस अवस्था में रहना चाहिये लेकिन जल में ऐसा नहीं है। आक्सीजन के शरीर
का वजन (अणुभार)32, नाइट्रोजन
का वजन (परमाणु-भार)
28, कार्बनडाइआक्साइड का वजन 44 होता
है लेकिन जल का इन सब में सबसे कम 18 होता है। वजन के हिसाब से जल को भी
गैस (भाप) की भांति NTP पर अदृश्य होना
चाहिये और वायु में विलीन होकर गति करना चाहिये । जल को द्रव रुप में अवतरित होने
के मूलकारक हरि-हाइड्रोजन ही है। हरि-हाइड्रोजन के
द्वारा दिये हुए हाइड्रोजन-बंध के वरदान के फलस्वरुप ही जल (द्रव) का साक्षात दर्शन हो पाता है। यदि हरि-हाइड्रोजन
का हाइड्रोजन-बंध, नहीं होता तो यह
भी एक गैस के रुप में अदृश्य होता।
(c)
नारायण शब्द नारा/नार और आयन से मिलकर बना है। नारा/नार
का अर्थ जल (H2O) होता
और आयन का मतलब कण से है। हरि-हाइड्रोजन (नारायण) भी वास्तव में नारा अर्थात जल के एक आयन (धनायन) ही तो है। जल क्रमशः दो आयनों (H+) और आक्सीजन (O2-) से मिलकर बना है। नारा (जल) का एक आयन ही तो नारायन (हरि-हाइड्रोजन) है। गीता में भी बताया गया है कि चारों ओर से जलाशयों
से परिपूर्ण होने पर जल के सूक्ष्म रुप से भी हरि-हाइड्रोजन (ब्रह्म) की प्राप्ति हो सकती है। हरि-हाइड्रोजन को
जानने वाले के लिये, जल के एक अणु से भी ब्रह्म अर्थात
हाइड्रोजन का ज्ञान हो सकता है।
(d)
भगवान के एक हजार नामों में से एक नाम आद्र भी होता है।
आद्र का संबन्ध वायु में व्याप्त जल के सूक्ष्म अणु से ही है। इस प्रकार मौसम को
आद्र बनाने का काम हरि-हाइड्रोजन का ही है। जैसे ही जल के गैसीय रूप के माध्यम से वायुमंडल
में हाइड्रोजन परमाणुओं की संख्या बढ़ने लगती है, वैसे ही भगवान के आद्र रुप का अवतार होने
लगता है।
(e)
हरि-हाइड्रोजन
द्वारा रचित यह जल भी भगवान के समान ही होता है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि जल के सामने
शास्त्रों के दिव्य मंत्रों को पढ़ने से एक विशेष संरचना प्राप्त होती है जिसको
माइक्रोस्कोप द्वारा देखा जा सकता है। जब इसी जल के सामने अश्लीलता और दुष्टता की
बात की जाती है तो अलग संरचना बनती है।
नोट : आक्सीजन और माया के समान-लक्षण को विधिवत
तरीके से मेरी आगामी रचना में प्रकट किया जायेगा । इस
पुस्तक को वजन आदि की दॄष्टि से हल्का बनाने की वजह से बहुत से गहन विचारों को
प्रस्तुत नहीं किया गया है।
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श्री राम *****************
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