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अध्याय - 23हरि
और हाइड्रोजन के कुल 51 लक्षण मिलते है। लक्षण-संख्या
=23/51 [ यदि वेद और विज्ञान दोनों सत्य है
तो यह भी सत्य है कि ईश्वर (हरि-हाइड्रोजन)
ही सर्वव्यापी
और अंतर्यामी परमात्मा है। ] |
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दुनियाँ के सभी पवित्र-ग्रंथो सहित
गीता में ऐसा बताया गया है कि ईश्वर सर्वव्यापी है। इस संदर्भ में गीता में आया है
कि
बहिरन्तश्च
भूतानाम-चरं चरमेंव च ।
सूक्ष्मत्वात्तदविज्ञेयं दूरस्थं चान्तिके च तत् ॥
वह (हरि-हाइड्रोजन) चराचर सब भूतों के बाहर-भीतर परिपूर्ण है, और चर-अचर भी
वही है और वह सूक्ष्म (31pm) होने से
अविज्ञेय है तथा अति समीप में और दूर
मेंभी स्थित वही है॥ ॥ [ गीता 13.16]
ईश्वर का जो रुप यशोदानंदन के रूप में आया था, वह तो अधिक
से गोकुल, मथुरा, द्वारिका, हस्तिनापुर
आदि राज्यों तक ही सीमित रहा, उसको तो अमेंरिका वाले नहीं जांनते
हैं फिर ऐसा क्यों कहा जाता है कि वह ईश्वर सर्वव्यापी है ? ईश्वर का वह
रुप मानव-शरीर का था वो गोकुल आदि राज्यों तक सीमित रहा होगा
लेकिन जो रूप सर्वव्यापी है, उस रुप का नाम विष्णु और नारायन है।
भगवान का प्राकितिक रुप हरि-हाइड्रोजन ही तो है जो विश्व के अणु
भी है और नारा के अयन भी है। राम का मतलब भी सर्वत्र रमन करने से है।
गीता से लिये
गये उपरोक्त श्लोक की वैज्ञानिक विवेचना की तीन प्रकार से किया गयी है क्योंकि भूत
शब्द का प्रयोग तीन अर्थों क्रमशः प्राणी, पंचभूत-पदार्थ
और पिंड होता है। ये तीनों अर्थ ही गीता के उपरोक्त श्लोक स्वीकार करते है ।
(1) प्राणी के अर्थ में :- हरि-हाइड्रोजन सभी प्राणियों की
सूक्ष्तम-ईकाई कोशिका में पाये जाने वाले कार्बोहाइड्र्ट, प्रोटीन, वसा, अम्ल,DNA, RNA,RBC, WBC, ATP, NADP आदि के अणुओं में सबसे अधिक संख्या में विराजमान है। हरि-हाइड्रोजन
ही इन सभी प्राणियों के बाहर बाह्यमंडल के रुप में विराजमान है। यह हरि-हाइड्रोजन, सूक्ष्म रुप में
हमारे शरीर में बिल्कुल पास में है और इन सभी प्राणियों के बाहर अति दूर स्थान (बाह्यमंडल) में व्याप्त है। हरि-हाइड्रोजन का
परमाणु सबसे छोटा होता है जिससे यह आँखों से दिखाई नहीं देता है। यह इतना कि जल के
एक ग्राम मात्रा में महासंख्य से अधिक कई गुना अधिक हाइड्रोजन के परमाणु समाये हुए
होते है।
(2) पिंड के अर्थ में :- भूत शब्द का अगला अर्थ पिंड निकाला गया है। संसार में पाये जाने वाले कुल 118 तत्वों
में सबसे सूक्ष्म हरि-हाइड्रोजन (31pm) ही होते है और हल्का (1.008 amu) होते है। यही कारण है कि समान्य
आँखों से देखने पर यह अविग्येय है। यह हरि-हाइड्रोजन ही जल आदि रुप में सबसे
समीप है और बाह्यमंडल, सूर्य और ग्रह आदि रुप में दूर भी स्थित है। यह पृथ्वी (भूत) के अंदर भी है और इसके बाहर बाह्यमंडल में भी है। (यहाँ
पर भगवान के तत्व रुप की व्याख्या की गयी है न कि नाभिकीय-कण रुप की )
(3) पंचभूत के अर्थ में : हरि-हाइड्रोजन पंचभूत पदार्थों के रुप
में, संपूर्ण सौरमंडल सहित ब्रह्मांड में भीं विराजमान है। मन्दाकिनी
का लगभग 98% भाग तारों/आग के द्वारा रचा गया है। प्रत्येक
तारों का लगभग 91% भाग की रचना हरि-हाइड्रोजन ही करते हैं । जल के रुप में
पृथ्वी और जीवों में विराजमान है। वायु के रुप में बाह्यमंडल और गैसीय ग्रहों, सौर-पवन के रुप
में विराजमान है। बृहस्पति-ग्रह (2.5X शेष 8 ग्रह) पर 89%, शनि पर 96%, अरुण
पर 83% और वरुण पर 80%
मात्रा में हरि-हाइड्रोजन
ही विराजमान है। सभी पिंडो को बाह्यमंडल
के (आकाश) में हरि-हाइड्रोजन ही
विराजमान होते है क्योंकि ये सबसे हल्के होते है जिसकी वजह से हमेशा उपरी परत में
रहते है। इस प्रकार सभी भूतो (ग्रहों) के बाहर-भीतर हरि-हाइड्रोजन
ही व्याप्त है। उस परमात्मा के सर्व-व्यापी के होने संदर्भ में श्रीरामचरितमानस
में आया है कि
आकर चारि लाख चौरासी ।
जाति जीव जल थल नभ बासी॥
सीय राममय सब जग जानी ।
करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी॥1॥
[ भावार्थ:-चौरासी लाख योनियों में चार प्रकार के (स्वेदज, अण्डज, उद्भिज्ज, जरायुज ) जीव जल, पृथ्वी और आकाश में रहते हैं, उन सब से भरे हुए इस सारे जगत को श्री सीताराम मय जानकर मैं दोनों हाँथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ ॥ब0द07घ/1॥]
श्रीरामचरितमानस से ली गयी उपरोक्त पंक्तियों में यह बताया गया है कि सीता
और रामजी प्रभु, सभी प्राणियों सहित सम्पूर्ण जगत में व्याप्त है।
राम जी भगवान के अवतार और इनकी पत्नी सीता जी लक्ष्मी (माया) के अवतार है। इस प्रकार भगवान को माया-पति भी कहा हैं । भगवन और उनकी माया के जो रुप दशरथ-नंदन और जनक-नंदिनी के रुप में आये थे वो तो अयोध्या से
लेकर लंका तक ही सीमित रहे होंगे फिर उन्हे सर्वव्यापी क्यों कहा गया है ? श्रीरामचरित्रामानस से ली गयी उपरोक्त
पंक्तियों में यही बताया गया है कि माता सीता जी और राम जी दोनों ही सभी जीवों (84 लाख) में निवास करते हैँ ।राम (हरि-हाइड्रोजन) और माया (आक्सीजन) के प्रेम के आकर्षण से जल (H2O) बनता है। हाइड्रोजन दो और आक्सीजन एक है
क्योंकि इनके बीच में जो प्रेम ( विद्युत-आकर्षण बल) है, उसमें राम का दो गुना होता है और माता एक गुना होता है। सुंदरकांड में आया
है कि
जनि जननी मानह जियँ ऊना
।
तुम्ह ते प्रेमु राम के दूना ॥
हे माता ! मन में
ग्लानि न मानिए, श्री
रामचंद्रजी के हृदय में आपसे दूना प्रेम है ॥[
सु00द013/5 ]
यह जल (सीताराम का ही रुप) ही सभी जीवों का आधार है। जीवों में सबसे अधिक पाये जाने यौगिक का नाम जल
ही है। विज्ञान के अनुसार प्रथम जीव की उत्पति जल में मानी जाती है। इस प्रकार
सारा पृथ्वी और 84 लाख प्राणियों में सीताराम (हरि-हाइड्रोजन और आक्सीजन) विराजमान रहते है। जीवात्मा को इस आक्सीजन रुपी
माया से प्रतिक्षण का मोह रहता है। जब जीवात्मा ऊपर जाती है तो वह इस आक्सीजन से मुक्त हो जाती है।
संसार ही माया है, माया से भागना और माया पर काबू पाना दो चीजें है। कर्म से भागना योगी का लक्षण नहीं है बल्कि कर्म करना ही योगी का लक्षण है। श्वश्न भी एक कर्म है, जो लोग आत्महत्या कर लेते है, वो लोग योगी नहीं है, उन पर यज्ञ भंग करने का पाप लगता है।
************** जय
श्री राम *****************
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जय श्री राम 🙏