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अध्याय - 13हरि
और हाइड्रोजन के कुल 51 लक्षण मिलते है। लक्षण-संख्या =13/51 [ यदि शास्त्र और साइंस दोनों सत्य है तो यह भी सत्य है
कि नारायण (हरि-हाइड्रोजन)
ही बहुत से
रुप लेते है और वही सूर्य-नारायण भी है।
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हमारे सनातन-धर्म में
सूर्य-पूजन का
विशेष महत्व है। छठ-पूजा के पावन अवसर पर आदित्यदेव अर्थात सूर्य देव की
पूजा की जाती है। सूर्यदेव को सूर्य-भगवान मानकर जल अर्पण भी किया जाता है। भगवान की महिमा
अपार है। वह सूक्ष्म रुप से लेकर विराट रुप में विराजमान है। गीता के अनुसार सूर्य
भगवान के ही रुप है। इस पुस्तक के अनुसार
हाइड्रोजन को भगवान अर्थात नारायण माना गया है। सूर्य एक ऐसा शब्द है जिसका प्रयोग
वेद और विज्ञान दोनों में बार बार किया गया है। ग्रंथों के अनुसार सूर्य को सूर्य-नारायण भी कहा जाता है। भगवान और
सूर्य के बीच संबध के विषय में गीता और श्रीरामचरितमानस में आया है कि :-
आदित्यानामहं विष्णु-र्ज्योतिषां
रविरंशुमान् ।
मरीचिर्मरुतामस्मि
नक्षत्राणामहं
शशी |
मैं अदिति के बारह पुत्रों में विष्णु और ज्योतियों में किरणों वाला
सूर्य
हूँ तथा
मैं उनचास वायुदेवताओं का तेज और नक्षत्रों का अधिपति चंद्रमा हूँ। [गीता10.21]
राम सच्चिदानंद दिनेसा । नहिं तहँ मोह निसा लवलेसा |
सहज प्रकाश रूप भगवाना । नहिं तहँ पुनि विज्ञान बिहाना ॥
श्री रामजी सच्चिदानन्दस्वरूप सूर्य हैं। वहाँ मोह रूपी रात्रि का लवलेश भी नहीं है।
वे स्वभाव से ही प्रकाश रूप भगवान है। [ ब0द0115/3]
भगवान का राम
रुप तो मर्यादा का सीमा था । इस रुप में भगवान ने सूर्य के बराबर प्रकाश कभी नहीं
छोड़ा। यदि वो नर रुप में सूर्य के बराबर प्रकाश छोड़ें होते तो सारी बानर सेना और
पृथ्वी जल कर राख हो गयी होती । भगवान सूर्य को शक्ति देने का कार्य अपने सूक्ष्म
रुप (हाइड्रोजन) से करते है। विज्ञान
के अनुसार नारायन (हरि-हाइड्रोजन) और सूर्यनारायन में निम्नलिखित संबध है।
सूर्य की
संरचना |
|||
क्र. |
तत्व |
% मात्रा (परमाणुओं की संख्या के अनुसार, लगभग में ) |
% मात्रा (द्रव्यमान के अनुसार, लगभग में ) |
1 |
हरि-हाइड्रोजन |
91.2 (पुस्तक में बार बार आया है ) |
71-74 |
2 |
सन्यासी-हिलीयम |
8.7 |
25-27 |
3 |
माया-आक्सीजन |
0.078 |
0.97 |
4 |
माया नाइट्रोजन |
0.0088 |
0.96 |
5 |
अन्य |
शेष |
शेष |
(a)
आँखों से
देखकर विशालकाय चीज के आयतन का अंदाजा लगाया जा सकता लेकिन द्रव्यमान का अंदाजा
नहीं लगाया जा सकता है। इस पुस्तक के लगभग सारे आँकड़े संख्या और आयतन के अनुसार
दर्शाये गये है। यह आँकड़ा जल, रसायनिक-ईंधन, वायु, जीव-शरीर आदि के विषय में दिये गये है। इस पुस्तक में हरि-हाइड्रोजन को
भगवान दिखाया गया है इसलिये यहां पर संख्या वाले प्रतिशत मात्रा का वरीयता दी
जायेगी । आयतन और संख्या दोनों के अनुसार ही सूर्य के लगभग संपूर्ण भाग की रचना
हरि-हाइड्रोजन
करते है। यह नारायण (हाइड्रोजन) ही सूर्य की लगभग संपूर्ण भाग (लगभग 91%) भाग की रचना करते है और थोड़े से अल्प भाग (लगभग 8.5% ) में संत-हिलियम रहते है। हिलियम रुपी सन्यासी माया के प्रभाव से
परे होता है और वह किसी से क्रिया नहीं करता है। वह अपने-आप में संतुष्ट रहता है। इस हिलियम
रुपी सन्यासी का स्थान सदैव भगवन के साथ में होता है। सन्यासी (भक्त) और भगवान की
समीपता के संदर्भ में आया है कि :-
अंतकाल रघुबर पुर जाई । जहां जन्म हरि भक्त
कहाई ।
सन्यासी
अर्थात हीलियम का स्थान सदा ही भगवान के पास में है।
1.
आवर्तसारणी मे,
2. परमाणुवीय-गणना में
3. बाह्यमंडल में
4.
सूर्य और तारों में ॥
(b)
यह नारायण
अर्थात हाइड्रोजन ही सूर्य को अपनी नाभिकीय-शक्ति प्रदान करते है। इस नाभिकीय-शक्ति के तेज से ही सूर्य जगत को
ऊष्मा और प्रकाश प्रदान करने में सक्षम हो पाते है ।
(c)
विज्ञान और
पुराण दोनों के अनुसार ब्रह्मा (प्रोटियम) के से आकाश
और आकाश से वायु (हाइड्रोजन-गैस) का जन्म हुआ
। आकाश में आज भी हाइड्रोजन नामक वायु विराजमान है। मारुत गणों, मरीचि और वायुओं की संख्या को लेकर आत्म-चिंतन जारी
है जो आगामी भविश्य में मेरी दूसरी पुस्तक में दिखेगा ।
उपरोक्त तीन कारणों से यह प्रमाणित
होता है कि सूर्यनारायण (लगभग 91.2%
हाइड्रोजन) कुछ और नहीं बल्कि नारायण (हाइड्रोजन) के ही रुप है
।
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श्री राम *****************
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