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अध्याय - 9हरि और हाइड्रोजन के कुल 51 लक्षण मिलते है। लक्षण-संख्या =09/51 [ यदि शास्त्र और साइंस दोनों सत्य है तो यह भी सत्य है कि भगवान का हरि-हाइड्रोजन वाला रुप ही पंचभूत के रचयिता है। यहाँ पर अग्नि नामक भूत पदार्थ को दिखाया गया है। ]
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ईश्वर ही अग्नि नामक भूत पदार्थ के रचयिता और मूलकारक है।
इस संदर्भ में गीता में आया है कि :
अहं
क्रतुरहं यज्ञःस्वधाहमहमौषधम् ।
मन्त्रोऽहमहमेंवाज्यम-हमग्निरहं हुतम् ॥
क्रतु मैं हूँ, यज्ञ मैं हूँ,
स्वधा मैं हूँ,
औषधि मैं हूँ,
मंत्र मैं हूँ,
घृत मैं हूँ,
अग्नि मैं हूँ और हवन रूप
क्रिया भी मैं ही हूँ । [गीता
9.16]
ईश्वर एक है और रुप अनेक है। उन अनेकों रुप में से एक
रुप आग का भी है। कहा गया है कि हरि अनंत, हरिकथा अनंता । भगवान राम रुप में आकर
सबरी आदि भक्तों का उधार करते है और कृष्ण रुप में आकर गीता का उपदेश देते है। वही
भगवान अपने सूक्ष्म हाइड्रोजन रुप से समस्त जगत को तपा रहे है। प्रभु के हरि-हाइड्रोजन
वाला रुप ही अग्नि नामक भूत-पदार्थ के मूलरचयिता है। विज्ञान के
अनुसार अग्नि दो प्रकार क्रमशः नाभिकीय-अग्नि और रसायनिक-अग्नि
होती है। इन दोनों प्रकार अग्नियों के रचयिता और मूलकारक हरि-हाइड्रोजन ही
है ।
(a)
नाभिकीय-आग :- यह अग्नि सूर्य और तारों में पायी
जाती है। ईश्वर का यह रुप सूर्य जैसे अरबों से भी अधिक तारों का रचयिता है। प्रत्येक
तारों के लगभग सम्पूर्ण भाग ( लगभग 91% से
अधिक, संख्या के अनुसार ) की रचने करने
वाले हरि-हाइड्रोजन ही है। शेष भाग (लगभग 7-8%) में संत-सन्यासी हीलियम है जो प्रभु के उस
ताप को सहन करने में सक्षम है। ईश्वर का यह रुप सूर्य के लगभग सम्पूर्ण भाग की
रचना करने के साथ-साथ, उसको अपने शरीर की नाभिकीय-शक्ति
भी प्रदान करता है। इस शक्ति के प्रभाव के कारण सूर्य ताप लगभग 1.57 करोड़ डिग्री-सेल्सियस ( केंद्र का
ताप ) हो जाता है।
इस जगत में पाये जाने 118 तत्वों
में हरि-हाइड्रोजन ही एक मात्र ऐसा तत्व है जो अकेले (केवल H2) भी आग की रचना करने में सक्षम है। सोना, लोहा, चांदी आदि
सभी हरि-हाइड्रोजन के ताप और प्रकाश से ही चमकते है। इस सचराचर
ब्रह्मांड में दो प्रकार की अग्नि क्रमशः नाभिकीय-अग्नि और
रसायनिक-अग्नि पायी जाती है। सूर्य में सौरमंडल का लगभग 99.9% भाग निहित है। मंदाकिनी का 98% भाग
सूर्य जैसे तारों से भरा हुआ है। इस प्रकार साबित होता है कि सूर्य और तारों सहित
समस्त ब्रह्मांड के आग की रचना हरि-हाइड्रोजन से हुई है। आग नामक भूत पदार्थ की व्याख्या
ब्रह्मांड-स्तर पर होनी चाहिये न कि मृत्यु-लोक (पृथ्वी)
के माया नगरी के अनुसार ।
(b)
रसायनिक-आग : श्रीरामचरितमानस
में आग-श्रोत (लकड़ी आदि) और प्रकट-अग्नि दोनों को लेकर ईश्वर की व्याख्या की गयी है।
विधिवत जानकारी के लिये लक्षण संख्या 15/51 को देखिये । बाहरी आक्सीजन रुपी माया
के प्रभाव को विज्ञान और ग्रंथ दोनों ही उपेक्षित कर रहे है क्योँकि सूर्य रुपी
विशालकाय आग के लिये किसी आक्सीजन रुपी माया की जरूरत नहीं पड़ती है। इस प्रकार
आग-श्रोत (ईंधन) ही आग के प्रतिनिधि है। यह आग लकड़ी, कोयला, वनस्पति-तेल, घी, डीजल, पेट्रोल, LPG गैस, हाइड्रोजन-गैस
आदि के रुप में होती है। इन सभी हाइड्रोकार्बन यौगिकों के अणु सुत्रो में सबसे
अधिक संख्या में हरि-हाइड्रोजन ही विराजमान है। जिस
यौगिक में हरि-हाइड्रोजन की प्रतिशत मात्रा अर्थात कृपा-शक्ति
जितना अधिक है, वो यौगिक (ईंधन) उतना ही अधिक
शक्तिशाली है। मेथेन (CH4) में इसकी कृपा 80
प्रतिशत है तो इसका शक्ति-मान 50-55MJ/Kg है और शुद्ध-हाइड्रोजन (H2) गैस
के इसका अग्नि-शक्ति का मान 120-142
MJ/KGहै। 118 तत्वों में हरि-हाइड्रोजन
को छोड़कर कोई ऐसा तत्व नहीं है जो केवल अकेले ही आग की रचना कर सके ।
इस संसार में पायी जाने वाले 118 प्रकार के परमाणुओं में कुछ खास परमाणु ही शक्ति प्रदान
करने में सफल होते है। रेडियो-एक्टिव परमाणु जैसे यूरेनियम आदि
शैतानी-शक्ति के प्रतीक है जिनसे शक्ति तो मिलती है लेकिन ये
प्राणघातक होते है। इनसे निकलने वाली गामा किरणों से कैंसर जैसी घातक बीमारी होती है।
हाइड्रोकार्बन के अणुओं से भी शक्ति मिलती है लेकिन इनसे कार्बंडाइआक्साइड का
श्राप लग जाता है। इससे ग्लोबल-वार्मिग बढ़ता है। इन शक्तियों का
प्रयोग केवल इंसान ही करते है। हरि-हाइड्रोजन की शक्ति यूरेनियम आदि से
प्रबल होती और इनकी ही शक्ति समस्त ब्रह्मांड को चला रही है। ये कार्बंनडाइआक्साइड की जगह कल्याण-कारक
जल बनाते है। इनकी शक्ति से कोई नुकसान नहीं होता है। इस प्रकार साबित होता है कि
नाभिकीय-आग और रसायनिक-आग दोनों के रचयिता और मूलकारक हरि-हाइड्रोजन
ही है। आने वाले दिनों आग का मूलकारक हरि-हाइड्रोजन की शक्ति प्रबल होगी|
भारत सरकार सहित दुनियाँ की तमाम सरकारें, हरि-हाइड्रोजन के हरी-उर्जा (THE GREEN HYDROGEN POWER) को प्राप्त करने के लिये ज्ञान-यग्य की आहुति प्रयोगशालाओं में दे रही है ।
नोट : बाईक, कार, बस और ट्रक आदि वाहनों के ईंजन के अंदर आग ही पैदा होती है जो आक्सीजन और ईंधन के योग से बनती है। विज्ञान की भाषा में इसी आग को उश्मीय-उर्जा कहते है।
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