अध्याय - 20हरि
और हाइड्रोजन के कुल 51 लक्षण मिलते है। लक्षण-संख्या
=20/51 [ यदि शास्त्र और साइंस दोनों सत्य
है तो यह भी सत्य है कि हरि-हाइड्रोजन
ही
सर्वशक्तिमान है। इस अध्याय में हरि हाइड्रोजन की शक्ति का गुणगान पृथ्वी-लोक (माया का संसार/मृत्युलोक)
के अनुसार
किया गया है। हरि-हाइड्रोजन ही अपनी शक्ति से समस्त
पृथ्वी-लोक को चला रहे हैँ । यहाँ पर हरि-हाइड्रोजन के उस शक्ति का गुणगान
किया गया है जो सभी जीवित प्राणियों के शरीर को चलाती है। ] |
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कहा जाता है कि परमात्मा ही सभी जीवों को अपनी शक्ति से
चला रहा है। इस जगत में 84 लाख प्रकार के जीवों की प्रजातिया
हैं, उन सबको जीवन शक्ति अर्थात चेतना प्रदान करने वाले को
ही परमात्मा कहा गया है। इस संदर्भ में गीता और श्रीरामचरितमानस में आया है कि
पुण्यो
गन्धः पृथिव्यांच तेजश्चास्मि विभावसौ ।
जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु ॥
मैं पृथ्वी में पवित्र-गंध और अग्नि में तेज हूँ तथा सम्पूर्ण भूतों (प्राणियों) में उनका जीवन हूँ और
तपस्वियों में तप हूँ | [ गीता 7.9 ]
जो चेतन कहँ जड़ करइ जड़हि करइ चैतन्य ।
अस समर्थ रघुनायकहि
भजहिं जीव ते धन्य ॥
जो चेतन
को जड़ कर देता है और जड़ को चेतन कर देता है,
ऐसे समर्थ श्री रघुनाथजी को जो जीव भजते हैं, वे धन्य
हैं ॥ द0119 ख॥(उत्तरकान्ड)
गीता और श्रीरामचरितमानस से ली
गयी उपरोक्त पंक्तियों में बताया गया है कि भगवान ही सभी प्राणियों को चेतना (जीवन-शक्ति) प्रदान करने वाले है। परमात्मा
का जो रुप कौशल्यानंदन और यशोदानंदन के रूप में आया था, वो रुप मानव-शरीर का था । यशोदानंदन के
मानव-शरीर रुप
को तो बहेलिये ने हत्या कर दी थी फिर ऐसा क्यों कहा जाता है कि वो सभी जीवों को
चेतना प्रदान करने वाले है ? जिसकी हत्या एक शिकारी द्वारा कर दी जाती वो भला सभी
प्राणियों के जीवित होने का आधार कैसे हो सकता है ? जिस कौशल्यानंदन ने हजारों साल
पहले अयोध्या में जल-समाधि ले ली, फिर यह कैसे हो सकता है कि वह जड़ को चेतन अथवा जीवित करने वाला हो ?
श्रीरामचरितमानस
और गीता से ली गयी उपरोक्त पंक्तियों में यह बताया गया है कि भगवान रामचंद्र और कृष्ण
के अनेकों रुप और अवतार है। वो भगवान अपने सूक्ष्म रुप (विष्णु अर्थात विश्व के
अणु) से सभी जीवों में विराजमान होकर चेतना शक्ति प्रदान करते है। भगवान अपने हाइड्रोजन
रूप में आकर सभी जीवों को जीवन-शक्ति अर्थात चेतना प्रदान करता है।
इस तथ्य को वैज्ञानिक विधि से
समझने के लिये जीवित-शरीर और मृत-शरीर के बीच के अंतर को समझना आवश्यक है। जीव-शरीर द्वारा उत्पन्न की गयी उर्जा का खपत दो भागों में होता है। पहला भाग उस शरीर के आंतरिक-भागों जैसे दिल, खून, फेफडे आँत आदि आंतरिक अंगों को
गतिमान रखने के लिये खपत होती है और दूसरा भाग बाहरी अंगो जैसे हाँथ-पैर को गतिमान करने किया जाता है।
चलना, दौड़ना या
कार्य करना, हाँथ-पैर के बाहरी गतिमान क्रिया के
उदाहरण है। एक सोये हुए व्यक्ति और मृत-व्यक्ति में यही अंतर होता है कि सोये हुए व्यक्ति के
आंतरिक अंग कार्यरत होते जबकि मृत-व्यक्ति के
आंतरिक-अंग भी
कार्यरत नहीं होते है। एक प्रकार से कहा जा सकता है कि जीवित-शरीर में प्रतिक्षण नयी उर्जा
का निर्माण होता रहता है जबकि मृत-शरीर में उर्जा का निर्माण बिल्कुल बंद हो जाता है। जब
कोई व्यक्ति पानी में डूबने लगता है तो उसके शरीर के किसी भी अंग को क्षति तो नहीं
पहुँचती और नहीं खून बहता है फिर भी वह मर जाता है क्योंकि उसके शरीर में नयी
उर्जा का निर्माण होना बंद हो जाता है जिसके फलस्वरुप आंतरिक-अंग भी कार्य करना बंद कर देते
है। जब आंतरिक अंग भी कार्य करना बंद कर देते है और तो इसको मृत्यु कहा जाता है। इस प्रकार साबित होता है कि
शरीर में प्रतिक्षण उत्पन्न होने
उर्जा ही जीवित होने अथवा मृत होने का निर्धारण करती है। इस प्रकार अब शरीर के उर्जा
प्रणाली को समझना आवश्यक है। जीवों में इस चेतन-उर्जा का निर्माण कोशिका स्तर
पर (अति
सूक्ष्म स्तर पर) होता है ।
जीवधारी मुख्यतः दो प्रकार
क्रमश पादप और जंतु होते है। घास, साग, फल, पेड़, पौधे आदि को पादप कहा जाता है और मच्छर, बिली, कुता, हाँथी और मानव और बंदर आदि दूसरी
श्रेणी में आते है। इन दोनों प्रकार के
प्राणियों में उर्जा-निर्माण की विधियों में थोड़ा सा फर्क होता है इसलिये इनकी उर्जा-प्रणाली को अलग-अलग चरणों में समझाया गया है ।
जंतु-शरीर की शक्ति : सभी
जीवधारियो में उर्जा का उत्पादन श्वसन के दौरान होती है। यह दो प्रकार की होती है।
श्वसन की क्रिया-विधि दो पदों में सम्पन्न होती है। पहला पद को
गलाईकोशिश और दूसरा पद को केब्स-चक्र कहते है।
ग्लाइकोसिस की खोज एम्ब्डेन ,मेंयरहाफ एवम् परसन ने की थी , इसलिये
इसको EMP पाथ्वे भी कहते है। ग्लाइकोसिस की
यह प्रक्रिया कोसिकाद्र्ब्य में सम्पन्न
होती है। केब्स चक्र की खोज सन् 1937 ई में ब्रिटिश वैज्ञानिक हैंस केब्स ने की थी । यह
प्रक्रिया माइटोकांड्रिया में सम्पन्न होती है। इन दोनों प्रक्रियाओ के दौरान क्रमशः 4 और 8 हरि-हाइड्रोजन के परमाणुओं का निर्माण होता है। ये हरि-हाइड्रोजन
के परमाणु ही, NADH और FADH2 के अणुओं का निर्माण करते है। NADH के अणु
से 3ATP और FADH2 के अणु से 2ATP अणुओं का लाभ होता है। मानव शरीर को यह उर्जा ATP अणुओं
से ही प्राप्त होती है। जंतु शरीर को जीवित रहने के लिये शक्ति प्रदान करने में हरि-हाइड्रोजन (H+) दो प्रकार से अहम भूमिका निभाते है।
पहली भूमिका यह है कि ATP अणु के निर्माण में सबसे अधिक संख्या में हाइड्रोजन
विद्यमान रहता है। दूसरी भूमिका यह है कि NADH और FADH2 के अणुओं का निर्माण करता है। शरीर की डिसचार्ज
कोशिकाओं में हरि-हाइड्रोजन को जुड़ते ही वो चार्ज (शक्तिवान) हो जाती है। इससे साबित होता है कि मानव शरीर को आवश्यक
उर्जा प्रदान करने वाले प्रमुख कारक तत्व-हाइड्रोजन ही है।
यही वही सर्वशक्तिमान है भी जो सूर्य/तारों में व्याप्त होकर संपूर्ण ब्रह्मांड को
ऊर्जा देते है ।
वनस्पति-शक्ति : इसी प्रकार पेड़-पौधों में प्रकाश-संश्लेषण
के दौरान उर्जा बनती है। प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया भी दो पदों क्रमशः
प्रकाश रसायनिक क्रिया (Photo Chemical Reaction)और रसायनिक-प्रकाशहीन क्रिया(Chemical Dark Reaction) में सम्पन होती है। प्रकाश-रसायनिक क्रिया पर्ण-हरित् के ग्रेना में सम्पन्न होती है। इसमें जल का
अपघटन होकर हाइड्रोजन का निर्माण होता है जो NADPH का निर्माण करता है जो उर्जा का ही
एक रुप है। इस प्रकार उत्पन्न हुई
उर्जा का उपयोग प्रकाशहीन क्रिया में किया जाता है ।इसका समीकरण इस प्रकार
होता है।
4H2O = 4H + + 4OH -
4H+ + 2NADP = 2NADPH2 .
इस प्रकार
हमने देखा कि सजीव प्राणियों में उर्जा ATP
(Adenosine Tri Phosphate), NADPH2 (3ATP) और FADH2 (2ATP ) के अणुओं के रूप
में प्राप्त होती है। इन सभी प्राणियों (जंतुओं
और पादपों) को चेतना-शक्ति प्रदान में हरि-हाइड्रोजन ही
प्रमुख कारक है। यह दो प्रकार से महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ATP के रसायनिक-अणुओं के
निर्माण में सबसे ज्यादा परमाणु, हाइड्रोजन के ही होते है। इसके साथ
ही यह ATP के रसायनिक-अणुओं
को शक्तिवान, यह हाइड्रोजन ही बनाता है। जब ATP से
उर्जा लेकर कार्य कर लिया जाता है तो वो पुनः NADP में बदल जाता है और इस NADP को
चार्ज करने वाले मूलकारक हरि-हाइड्रोजन ही तो हैं । एक
जीवित और मृत प्राणी की कोशिकाओं में यही अंतर होता कि जीवित-शरीर के
चार्ज कोशिकाये होती और मृत-शरीर में चार्ज-कोशिकाओं
का अभाव हो जाता है। जब यह उर्जा शून्य हो
जाती हैं तो प्राणी के पास सांस लेकर नयी उर्जा बनाने की शक्ति भी नहीं भी मिल
पाती है और इस प्रकार प्राणी सांस लेना बंद कर देता है। इस घटना को ही मृत्यु कहते
है। इस प्रकार साबित होता है कि हरि-हाइड्रोजन ही कोशिकाओं को चार्ज, जीव को चेतना-शक्ति
प्रदान करते है ।
नोट : शास्त्रों में शक्ति और साइंस में उर्जा शब्द एक दूसरे के समकक्ष है। पुस्तक को किसी एक पक्ष में दर्शाने के लिये साइंस वाली बात में भी शक्ति शब्द का प्रयोग किया गया है। इसके लिये हमें खेद है।
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श्री राम *****************
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