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अध्याय - 19हरि
और हाइड्रोजन के कुल 51 लक्षण मिलते है। लक्षण-संख्या
=19/51 [ यदि शास्त्र और साइंस दोनों सत्य
है तो यह भी सत्य है कि ईश्वर (हरि-हाइड्रोजन)
ही
सर्वशक्तिमान है। इस अध्याय में हरि-हाइड्रोजन की शक्ति का गुणगान
पृथ्वी-लोक (माया का संसार/ मृत्युलोक)
के अनुसार
किया गया है। हरि-हाइड्रोजन ही अपनी शक्ति से समस्त
पृथ्वी-लोक को चला रहे हैँ। यहाँ पर हरि-हाइड्रोजन के विद्युतशक्ति का
गुणगान किया गया है। ] |
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ईश्वर ही अपने अतुलित बल से समस्त जगत को चला रहे है। एक
समान्य व्यक्ति अधिक से अधिक एक बैलगाड़ी अथवा बंद-बाइक को अपने
शरीर के बल से चला सकता है लेकिन परमात्मा तो अपने अपार बल से समस्त जगत को चला
रहा है। वह परमात्मा इस पृथ्वी-लोक को चलाने के लिये रसायनिक, पेशीय और
विद्युत आदि शक्तियों का प्रयोग करता है। इस अध्याय में हरि-हाइड्रोजन को
विद्युतशक्ति का मूलकारक बताया गया है। विद्युत शक्ति तो मूल रुप से एक ही प्रकार
की होती है फिर भी उसके उत्पति के अलग-अलग तरीके के कारण उसके अलग-अलग
नाम दिये जाते है जैसे :
1. जल- विद्युत (हाइड्रोजन ही मूलकारक)
2. पवन-विद्युत (हाइड्रोजन ही मूलकारक)
3. कोयला-विद्युत (हाइड्रोजन
ही मूलकारक)
4. परमाणु-विद्युत (हाइड्रोजन
ही मूलकारक)
5. बैटरी-विद्युत (हाइड्रोजन ही मूलकारक)
6. सौर-विद्युत आदि (हाइड्रोजन ही मूलकारक)
जल- विद्युत, कोयला-
विद्युत, परमाणु- विद्युत और पवन-
विद्युत का मूल सिद्धांत एक ही होता है। यह मूल सिधांत फैराडे के विद्युत-चुम्बकीय
नियम पर अधारित होता है। इसी नियम के अनुसार जब डायनेमो की टरबाइन को किसी भी तरीका
से घुमाया जाता है तो वह विद्युत-शक्ति को जन्म देता है। इस टरबाइन
को घुमाने के लिये विभिन्न युक्तियों का प्रयोग किया जाता है
और इसी के हिसाब अनुसार इसका नामकरण भी किया जाता है ।
i: इस टरबाइन को नदियो के जल से घुमाने पर जो शक्ति जन्म
लेती है, उसको जल- विद्युत शक्ति कहते है। भारत में
जल- विद्युत परियोजनाओं द्वारा इसका निर्माण होता है ।
ii: इस
टरबाइन को कोयला की आग से उत्पन्न जलवाष्प के दाब से घुमाने पर जो शक्ति जन्म लेती है उसको कोयला-
विद्युत शक्ति कहते है। कोयला विद्युत का निर्माण, तमिलनाडु-तारापुर में होता है ।
iii: इस
टरबाइन को जब परमाणु रिएक्टरों में उत्पन्न ऊष्मा के
द्वारा जल को वाश्पित करके के घुमाने पर
जो शक्ति जन्म लेती है उसको परमाणु- विद्युत शक्ति कहते है ।
iv: हाइड्रोजन
द्वारा दी गयी नाभिकीय उर्जा से ही सूर्य हवाओं को बहाता
है और इन्ही हवाओं के प्रयोग से उत्पन्न उर्जा को पवन-शक्ति कहते है।
इस सयंत्र को पवन-चक्की भी कहते है ।
इस
प्रकार हम सभी देखते है कि जल- विद्युत हो, कोयला-विद्युत
हो या परमाणु विद्युत हो सबका मूल कारक जल ही है क्योंकि जल के अंदर ही वो दिव्य
गुण प्राप्त है जिससे ऐसा चमत्कार हो पाता है। जल के दिव्य गुण निम्नलिखित है
जिससे वह विद्युत शक्ति का निर्माण हो पाता है ।
Ø जल का सम्राज्य पृथ्वी पर सबसे अधिक
(75%) फैला हुआ है
इसलिये यह असानी से और पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो जाता है ।अन्य द्रव (तेल आदि ) कम
पाये ही जाते है ।
Ø अन्य द्रव ताप बढ़ने पर यह रसायनिक
क्रिया करके जल जायेंगे जिससे आग लग जायेगी और इनका प्रयोग टरबाईन को घुमाने में नहीं
किया जा सकता है। जल ताप बढ़ने पर, भौतिक परिवर्तन द्वारा अपना रुप
बदलकर जलवाष्प बन जाता है लेकिन जलता नहीं है ।
Ø यह असानी से कम ताप सीमा के अंदर तीनो रूपों ( बर्फ, जलवाष्प) में पाया
जाता है। यह गुण किसी भी द्रव के अंदर नहीं है। अन्य द्रवों को मात्र 1000C पर गैस बनना
संभव नहीं है। विद्युत-उर्जा के उत्पादन जल के बिना सम्भव नहीं
है और इस सचराचर जगत में जल के अतिरिक्त यह महान कार्य कोई नहीं कर सकता है। जल के
दिव्य-गुण के मूलकारक हरि-हाइड्रोजन ही
है। इसको एक काल्पनिक आत्म-कथा के माध्यम से निम्नवत समझाया
गया है ।
जल- विद्युतशक्ति और जल की जीवन-कथा :
एस. रामायण |
हे
बल्बनाथ जी , आप के घर के अंदर जो प्रकाश/रौशनी/गर्मी आदि रहते है, इन सबको आप कहां से लाते हो और क्यों लाते हो ? |
बल्ब-बाबा |
मुझ
से दूर से ही बात कर, मैं काँच का बना हूँ । फ़ुटकर तेरी आँखों को भड्का
सकता हूँ । मैं अपने घर के अंधेरे को भगाने के लिये यह सब करता हूँ । यह प्रकाश , चंचला ( विद्युत) के अनुसार काम करती है। मुझे जहां भी, चंचला (विद्युत) मिल जाती है वही पर प्रकाश को प्रकट कर देता हूँ । |
एस. रामायण |
हे
चंचला ( विद्युत), तुम कहां से आते हो
? आप प्रकाश/रौशनी/गर्मी को कहां से लाते हो ? |
हे
चंचला ( विद्युत) |
हे
एस० रामायण, आप एक अध्यापक रह चुके हो ? आप भौतिक से लेकर रासायनिक तक हर लीला जानते हैं ? फिर भी प्रश्न कर रहे हो ? मैं यह उर्जा आवेश से लाता हूँ । मैं आवेशित होकर
कार्य करता हूँ । यह आवेश का नियम
कुलाम्ब के नियमानुसार कार्य करता है। दो आवेशित कणों के बीच दुरी जितनी कम होती
है, आकर्षण बल उतना ही ज्यादा लगता है। यही कारण है कि
धारा प्लस माइनस के बीच में तेज रफ्तार से (50Hz ) गति करता रहता हूँ तब जाके लाईट
आती और बच्चे ईमर्जेंसी-लाइट चार्ज करते हैं और रात को घर पर पढ़ते है । |
एस. रामायण : |
मुझको
तुम्हारे इस झटके वाली आवृति से बहुत ख़तरा पहुँचा है। ये बताओ कि तुम आये कैसे
थे ? |
हे
चंचला ( विद्युत) |
मैं
अच्छे सुचालक-तार रुपी सड़क पर अपने ईलेक्ट्रान रुपी बाइक पर सवार
होकर ही चलता हूँ और तुम सावधान रहो मुझसे । मैं बहुत खतरनाक हूँ । मैं लोगों के जन-धन की नुकसान भी पहुँचा देता हूँ
। मेंरे से कुचालको कोई खतरा नहीं है। मेंरे पास यदि कोई सु-चालक अर्थात अच्छा चालक लेकर आया तो मैं तुझे ऐसे जाल
में फसाता हूँ कि केवल बाहरी लोग ही
उसको बचा पाते हैं । भले ही मुझे वैज्ञानिक, ईंजीनियर आदि ने योग्यतावान बनाया
है लेकिन मैं उनको को भी नहीं छोड़ता हूँ । मुझे जिन लोगों ने भेजा है, वो लोग और भी हाईवोल्टेज वाले है ? उसके हाँथ
में बहुत
पावर है इसलिये उसको पावर-हाउस भी कहते है ? |
एस. रामायण : |
हे
पावर-हाउस, आप ही घर-घर जाकर सबको गर्मी और उर्जा
प्रदान करते हो ? आप महान हो ? आपको यह उर्जा कहां से मिलती है ? |
पावर-हाउस |
तुम
ईधर-उधर ज्यादा न भटकों,
मैं बहुत
ही पावर-फुल हूँ फिर
भी दया बस तुमको डायनेमो का रास्ता दिखा रहा हूँ । |
एस. रामायण : |
हे
डायनेमो भाई , आप यह उर्जा कहां से लाते हो ? |
डायनेमो
भाई |
मैं
तो यांत्रिक उर्जा का सांस लेता हूँ और
विद्युत-उर्जा को छोड्ता हूँ । यह यांत्रिक उर्जा मुझे नदियों के जल के गतिज-उर्जा से प्राप्त होती है । |
एस. रामायण |
हे
नदी,
इस जल को
इतनी गतिज तुम कहां से देती हो ? |
नदी |
हे
वत्स , ये तो प्रकृति का नियम है कि जो जितने ऊँचाई पर होगा, उसमें उतने ही स्थितिज उर्जा उत्पन्न होगी । जल
अपनी क़िस्मत रुपी ऊँचाई के फलस्वरुप जन्म से ही इस स्थितज-उर्जा को धारण करता है। मैं इसी स्थितिज-उर्जा को को गतिज-उर्जा में बदल देती हूँ । तुम जल से जाकर पुछो कि वह
इतनी ऊँची क़िस्मत लेकर कहां से और कैसे पैदा होता है ? |
एस. रामायण |
हे
जल, आपको इतनी ऊँचाई पर जन्म लेने का क्या राज है ? |
जल |
हमारे
पूर्वज (बादल) आकाश (स्वर्ग-लोक) में रहते है और कुछ समय पश्चात
वर्षा के रुप में पृथ्वी पर इस ऊँचाई पर जन्म लेते है और अच्छे संस्कारो की वजह
से नदियों का जल बनने का सौभाग्य प्राप्त करते है। हे, मास्टर-साहब, आप हमारे पूर्वज बादल के पास जाइये । |
बादल |
हे
मृत्यु लोक के प्राणी, हम सब की कथा अनंत है। हम लोग पृथ्वी पर ही विभिन्न
जल श्रोतो (महासागर आदि)
से से तप
करके आये है ? तुम जाओ और महासागर से ही पूछो । |
महासागर |
हे
मानव, मैं यहाँ का मालिक हूँ । मेंरे यहाँ
जो भी आता है, उसकी योग्ययता देखकर रख लेता हूँ । मेंरे अंदर अथाह
जल, लाखों जीव और वनस्पतियां समायी हुई है। यह सब मेरा
राज्य है। जहां तक बादलो की बात है तो वो सब जल के पूर्वज है इसलिये तुम जल से
हीं इसके बारे में पूछ लो । |
एस. रामायण |
हे
जलदेव, मैंने तो आपको विद्युत-उर्जा का निर्माण करने वाले डायनेमो के पास (नदी-जल के रुप में) देखा था ? आप यहाँ कहा से प्रकट हो गये ? |
जल |
आप
सही कह रहे हो, मास्टर-साहब , मैं वही जल हूँ जो नदियों के माध्यम से डायनेमो की
टरबाइन को अपना गतिज उर्जा का त्याग और आशीर्वाद देता हूँ | मेंरे इसी आशीर्वाद और त्याग से विद्युत-उर्जा का जिंदगी बनती है और बाद में यह मुझको भी उसके
संपर्क में आने से अपघटित (टुकडे-टुकडे) कर देता है। यह विद्युत इतना
खतरनाक होता है कि इससे लोगों को बचाने लिये हडियो और खोपडी का चित्र बनाया जाता
है। इसको कभी सुंदर चाल रखने वाले सुचालक के प्रयोग से नहीं पकड़ना चाहिये । इसको हमेशा खराब चाल रखने वाले
कुचालक पदार्थ से ही पकड़ना चाहिये । यह इसी के लायक है। जब यह घात कर देता है
तब जाके पता चलता है कि यह विश्वास-घाती है । |
एस.
रामायण |
अच्छा
तो आप नदियो से होकर यहाँ आये है ? ये बताइये आप नदियों से होकर कैसे
आते है ? |
जल |
पृथ्वी
माता की मदद से, गुरुत्व के नियमानुसार हम ऊँचे स्थान से निचे के
स्थान कि ओर बहते हुए इस समुंद्र में पहुँच जाते है । |
एस.
रामायण |
यहाँ
से आप के पूर्वज लोग (बादल) ऊपर कैसे जाते है
? |
जल |
आना-जाना तो सब परमात्मा के हरि-हाइड्रोजन रुप (All-God-H+) की
लीला है ? |
एस.
रामायण |
हे
जल महाराज,
मैं
विज्ञान का एक अध्यापक और एक प्रबल-छात्र रह चुका हूँ । मैं आपसे
हाँथ जोड़कर बिनती करता हूँ कि आप मुझे परमात्मा के हरि-हाइड्रोजन रुप (All-God-H+) की
लीला को वैज्ञानिक तरीका से समझाइये ? |
जल |
जैसे
सब लोग आते जाते है, वैसे ही हम लोग भी आते जाते रहते है ? इसमें कौन सी बडी बात है ? |
एस.
रामायण |
बडी़
बात तो जरुर है । नियम
तो यही है कि दो गैसीय तत्वों से बना यौगिक भी गैसीय ही होना चाहिये ? आप आक्सीजन और हाइड्रोजन दो गैसीय तत्वों से बने हो
फिर गैसीय रुप में न होकर के द्रव रुप में क्यों हो ? कोई न कोई प्रभु हरि-हाइड्रोजन की लीला अवश्य है । आक्सीजन
के शरीर का वजन (32), नाइट्रोजन के शरीर का वजन (28), कार्बनडाईआक्साइड के शरीर का वजन (44) है और आपके शरीर का वजन मात्र (18) है। वो सभी अपने शरीर का इतना वजन लेकर दिन-भर लाखों किमी0
की गति
करते रहते है और एक आप हो कि इतना हल्का और दो गैसीय तत्वों से रचित होकर भी द्रव
रुप में धरातल पर द्रव रुप में विराजमान हो ? कुछ तो रहस्य अवश्य है ? हे जल-देव , मुझ पर कृपा करके बताइये । |
जल |
हे
मास्टर साहब, आप बिल्कुल सच बोल रहे हो । अपने शरीर के वजन और रचना
के हिसाब से मुझे भी हवाओं के साथ बहना पड़ जाता लेकिन मैं उन
सबका अपवाद हूँ । मेंरे (H2O) को यह अपवादिक दिव्य शक्ति हरि-हाइड्रोजन (All-God-H+) के द्वारा प्रदान की गयी । |
एस.
रामायण |
हे
जल देव, हरि-हाइड्रोजन (All-God-H+)
तत्व-हाइड्रोजन ने आपको कैसी दिव्य शक्तिया प्रदान की है ? यह रहस्यमयी लीला बताकर इस तुक्ष मास्टर-साहब को अनुग्रहित कीजिए । |
जल |
हाइड्रोजन
ने मुझे तीन दिव्य-शक्तिया प्रदान की है । 1. हरि-हाइड्रोजन ने मुझे दिव्य
हाइड्रोजन-बंध की शक्ति प्रदान की है जिसके कारण से कम वजन होने
के बावजुद भी द्रव अवस्था में रहता हूँ ।
ताप बढने के कारण मेंरे इस बंध की दिव्य-शक्ति कम होने लगती है और 1000C पर यह बिल्कुल ही कम हो जाती है
और मैं भी आक्सीजन-गैस आदि की तरह गैस (भाप) वाष्प बन जाता हूँ । 2.
मेंरे शरीर
के 66% भाग, हरि-हाइड्रोजन (All-God-H+)
द्वारा और
शेष उनकी माया आक्सीजन द्वारा रचित है। मैं कुछ और नहीं बल्कि हरि-हाइड्रोजन और उनकी माया का ही सम्मिलित रुप हूँ । यही
कारण है कि गीता में परमात्मा ने स्वयं को जल से संबोधित किया है । 3.
हरि-हाइड्रोजन ने मुझको दिव्य हाइड्रोजन-बंध का वरदान दिया है जिसके कारण अन्य गैसों की तुलना
में मैं समान्य ताप परिसर के अंदर तीनों रुप को प्राप्त कर पाता हूँ । हरि-हाइड्रोजन ही सूर्य-रुप में अपनी ऊष्मा देकर, मुझको बादल बनाकर ऊपर उठाते रहते है। इसी प्रकार संपूर्ण दुनियाँ का जल-चक्र चलता रहता है। इस जल चक्र के कारण ही नदियों में
जल भरता रहता है और तब जाके टरबाईन-घुमाकर बिजली बनायी जाती है। उस
बिजली से बल्ब-बाबा के घर में रौशनी प्रकट होती है । |
एस.
रामायण |
हे
जल देव, क्या यह महान कार्य (जल-चक्र) हाइड्रोजन-हरि के शिवाय कोई और तत्व कर सकता
है ? |
जल |
संपूर्ण
ब्रह्मांड में ऐसा कोई सर्वशक्तिमान नहीं है जो यह दिव्य शक्ति को मुझको प्रदान
करने की क्षमता रखता हो । हे मास्टर साहब, यदि हरि-हाइड्रोजन नहीं होते तो यह हाइड्रोजन-बंध और ऊष्मा (सूर्य की) नहीं होते और फिर जल-चक्र सम्भव नहीं था । जल-चक्र के बिना नदी का जल नहीं बनता । जब नदी का जल नहीं
बनता तो जल- विद्युत नहीं बनता है। जब विद्युत नहीं होता तो बल्ब के घर में घुसता ही नहीं फिर रौशनी/प्रकाश/गर्मी का कोई सवाल ही नहीं उठता । |
लेखक |
हे
जल देव, वह परमात्मा (हरि-हाइड्रोजन)
ही वर्षा
कराता है, इस बात के लिये आपके पास कोई शास्त्रीय-साक्ष्य भी है क्या ? |
जल |
हे मास्टर-साहब, आपका तो नाम ही रामायण है और फिर भी ऐसा प्रश्न क्यों
कर रहे है ? आप तो जानते ही है कि गीता में परमात्मा ने स्वयं
बताया है कि तपाम्यहमहं
वर्षं
निगृह्णाम्युत्सृजामि च । [ मैं ही
सूर्यरूप से तपता हूँ,
वर्षा का आकर्षण करता हूँ और उसे वरसाता
हूँ।
] हे, मास्टर साहब, उस परमात्मा के अनेकों रुप है। आज
तक कोई ऐसा जीव प्रकट नहीं हुआ जो सूर्य रुप में 6000 सेल्सियस ताप पर तपे भी और न्युन ताप पर भी
वर्षा करा दे फिर गीता में भगवान ने स्वयं
क्यों कहा है कि मैं ही तपता हूँ और वर्षा भी कराता हूँ ? यशोदानंदन के रुप में उस परमात्मा
ने अपने हाइड्रोजन रुप की महिमा का बखान किया है। उपरोक्त पंक्तियों में हरि-हाइड्रोजन स्वयं बता रहे है कि मैं सूर्य रुप (91%) में नाभिकीय-संलयन शक्ति से तपता हूँ । मेंरे
ही नाभिकीय-ताप के महासागरों का जलवाष्प बनकर मेरी ओर आकर्षित
होता है। मेंरे ही हाइड्रोजन-बंध की शक्ति से जल जनजीवन ताप
द्रव बन जाता है और वर्षा होने लगती है। (इस
आत्म-कथा के सभी पात्र काल्पनिक है। ) |
इस भूमिका को समझने पर यह पता चलता है कि जल-
विद्युतशक्ति के निर्माण के मूलकारक हाइड्रोजन ही है। ये तीन प्रकार से अपनी अहम भूमिका
निभाते है। ये हाइड्रोजन ही जल के शरीर (अणु) को बनाने
अपनी कृपा (66%) करते है। ये हाइड्रोजन ही जल को हाइड्रोजन-बंध
का दिव्य-शक्ति प्रदान करते है जिससे वह समान्य ताप पर द्रव-रुप (अपवादिक) में पाया जाता है जिससे जगत कल्याण के लिये जल-चक्र
की घटना पुरी हो पाती है। ये हाइड्रोजन ही सूर्य में व्याप्त होकर
ऊष्मा और प्रकाश देते है जिससे बादल बन पाता जिससे वर्षा हो पाती है। इसी वर्षा से
नदियों में जल पहुँचता जिससे विद्युत-उर्जा बनकर बल्ब के अंदर जाती और
रौशनी प्रकट होती है ।
बैटरी- विद्युत-शक्ति : जल- विद्युत की अनुपस्थिति
इनवर्टर आदि का प्रयोगकिया जाता है। इस इनवर्टर और वाहनों के बैटरी के रुप में लेड-एसिड
बैटरी का प्रयोग किया जाता है। इस बैटरी में सल्फ्युरिक-एसिड (H2SO4) का
प्रयोग किया जाता है। इसमें पाये जाना वाला हाइड्रोजन-आयन जो
साक्षात हरि-हाइड्रोजन होता है, वो इस बैटरी को उर्जावान बनाने का मूल-कारक
है ।इस अम्ल में हरि-हाइड्रोजन (H+) की कृपा (आयनों की संख्या) जितनी अधिक होती है वो बैटरी-उतनी ही अधिक
चार्ज मानी जाती है। जब बैटरी को उपयोग में लाया जाता है तो (हरि-हाइड्रोजन) H+ की कृपा जैसे-जैसे (आयनों
की संख्या) कम होने लगती और बैटरी धीरे-धीरे डिस्चार्ज
होने लगती है। इससे साबित होता है कि विद्युत-उर्जा प्रदान करने वाले लेड-एसिड
बैटरी के मूलकारक भी हरि-हाइड्रोजन ही है ।
Negative plate reaction:
Pb + HSO-4 → PbSO4(s) + H+ 2e−
Positive plate reaction: PbO2 + HSO−4
+ 3H+ + 2e−→ PbSO4 + 2H2O + H+ ( हरि-हाइड्रोजन)
जल-विद्युत के
बाद दूसरा स्थान इस बैटरी का ही आता है। इस बैटरी का उपयोग सभी वाहनों और होम-इनवर्टर
आदि में होता है। हरि-हाइड्रोजन (H+) की कृपा (आयनों की संख्या) से ही एसिड के अंदर वो दिव्य शक्ति आती है ,जिससे इस
बैटरी (लेड-एसिड) का निर्माण
होता है। इसी बैटरी से ई-रिक्शा, स्कूटर आदि
लोगों को ढो रहे है। अभी तक परमात्मा के हाइड्रोजन रुप के नाभिकीय, रसायनिक और विद्युतशक्तियों का गुणगान किया गया है लेकिन
अगले अध्याय में जैविक-शक्ति का गुणगान किया गया है ।
नोट : आजकल लिथियम बैटरी का जमाना आ रहा है। लीथियम भी लगभग हाइड्रोजन के साथ ही प्रकट हुआ था । यह तीसरे स्थान पर आता है जबकि हाइड्रोजन पहले स्थान पर आता है। यही कारण है कि लिथियम बैटरी का राज भी चलेगा ।
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श्री राम *****************
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जय श्री राम 🙏