अध्याय - 5हरि और हाइड्रोजन के कुल 51 लक्षण मिलते है। लक्षण-संख्या =05/51 [ यदि शास्त्र और साइंस दोनों सत्य है तो यह भी सत्य है कि नारायण (हरि-हाइड्रोजन) का ड्यूटेरियम-विष्णु वाला रुप ही जगत-रक्षक का कार्य करता है | इसके 6 कारण है। ] | |
(a)
हरि-हाइड्रोजन का यह रुप तो समान्य
हाइड्रोजन के साथ में भी (0.156% )
तक विराजमान रहता है लेकिन फिर भी
इनका स्थायी निवास समुंद्री भारी-जल (क्षीण-सागर) ही है। समान्य-जल से भारी होने के कारण, समुंद्र की
गहराइयों (क्षीण-सागर) में पाये
जाने की सम्भवना अधिक होती है। वेद (प्राचीन-ग्रंथ) और विज्ञान दोनों के अनुसार ही, ड्युटेरियम-विष्णु
का स्थायी निवास समुंद्री-जल (भारी जल) ही है ।
(b)
ऐसा माना जाता है कि विष्णुजी किसी दूसरे लोक से पृथ्वी
पर अवतरित हुए थे। विज्ञान के अनुसार भी ड्यूटेरियम-विष्णु भी
आकाशीय पत्थरों से पृथ्वी पर आये है। प्रारम्भ में पृथ्वी पर भारी-जल नहीं
था । यह अकाशीय-पत्थर (कोमेट) से पृथ्वी पर
अवतरित हुआ है ।
(c)
गीता और बृहस्पतिवार-व्रत कथा के
अनुसार विष्णुजी और बृहस्पतिदेव एक ही है। सौरमंडल के 9 ग्रहों में
से वृहस्प्तिग्रह (जूपिटर) एक ऐसा ग्रह जो कि 89% हरि-हाइड्रोजन का रुप है। यह ग्रह शेष 7 ग्रहों के योग़ का 2.5 गुना है।
सौरमंडल में
ड्यूटेरियम-विष्णु के विराजमान होने का अनुमान, इसी ग्रह से
लगाया जाता है। ड्यूटेरियम-विष्णु सबसे अधिक मात्रा में बृहस्पतिग्रह
पर ही विराजमान है। यही कारण है कि बृहस्पतिदेव और विष्णु जी को एक मानकर पूजा की
जाती है ।
(d)
बृहस्पतिवार-व्रत में केले की
पुजा की जाती है और केले में विष्णु के विराजमान होने की बात की गयी है। ड्युटेरियम-विष्णु
का NMR स्पेक्ट्रोग्राफी करने पर केले के अकार की आकृति
प्राप्त होती है। इस बात को Rode-Like and Banana
shaped LCs by means of Dueteriyam नामक पुस्तक में
लिखा गया है। इसके लेखक वेलेंटिया-डेमेंनिसी है। यह पुस्तक 2008 में लिखी गयी थी । यह पुस्तक अमेंजन पर उपलब्ध है ।
(e)
मैंने विष्णु शब्द का व्यक्तिगत व्याख्या की है। विष्णु
शब्द ‘विष’ और ‘अणु’ से मिलकर बना है। ड्युटेरियम-विष्णु, यदि शरीर में 25% तक
रहे तो नशा होती है लेकिन यह मात्रा यदि 50%
से अधिक हो जाये तो प्राणी की मौत
हो सकती है। इसलिये विष्णु रुप का केवल दर्शन करना चाहिये न कि भक्षण । दैत्य लोग
देवताओं को निगलने की कोशिश करते थे और मारे जाते थे।
(f)
रचना का कार्य भले ही प्रोटियम-ब्रह्मा वाला
रुप करता है लेकिन इस जगत के सभी कणों के निर्माण आदि पर नियंत्रण तो ड्यूटेरियम-विष्णु की ही रहती है। इस बात को साइंस भी मानता है। यही जगत
नियंता है।
सत्य सनातन-धर्म
के प्रसिद्ध गुरु शंकराचार्य के अनुसार विष्णु का मतलब सर्वत्र विराजमान होने से
भी है। विष्णु और महाविष्णु की कथा को अवश्य समझिये । इस प्रकार
ड्यूटेरियम-विष्णु, समान्य जल में भी अल्प रुप में विराजमान रहते है। इस
प्रकार वह सर्वत्र व्याप्त भी है ।
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जय श्री राम 🙏