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05 अप्रैल, 2023

05/21 लक्षण संख्या-05/21 [हरि-हाइड्रोजन का विष्णु रुप ]

 

 

अध्याय - 5

हरि और हाइड्रोजन के कुल 51 लक्षण मिलते है।

लक्षण-संख्या =05/51

यदि शास्त्र और साइंस दोनों सत्य है तो यह भी सत्य है कि नारायण (हरि-हाइड्रोजनका ड्यूटेरियम-विष्णु वाला रुप ही जगत-रक्षक का कार्य करता है |  इसके कारण है। ]


 हरि-हाइड्रोजन के तीन रूपों में से ड्यूटेरियम-विष्णु  वाला रुप ही जगत-रक्षा का कार्य करता है। यह प्राणघाती गामा किरणों को अवशोषित करके, संसार की रक्षा करते है। इनके प्रभाव से समुंद्री-जीवों की रक्षा होती है। ड्यूटेरियम-विष्णु की वैज्ञानिक लीला इस प्रकार से है।

(a)   हरि-हाइड्रोजन का यह रुप तो समान्य हाइड्रोजन के साथ में भी (0.156% ) तक विराजमान रहता है लेकिन फिर भी इनका स्थायी निवास समुंद्री भारी-जल (क्षीण-सागर) ही है। समान्य-जल से भारी होने के कारण, समुंद्र की गहराइयों (क्षीण-सागर) में पाये जाने की सम्भवना अधिक होती है। वेद (प्राचीन-ग्रंथ) और विज्ञान दोनों के अनुसार ही, ड्युटेरियम-विष्णु का स्थायी निवास समुंद्री-जल (भारी जल) ही है ।

(b)  ऐसा माना जाता है कि विष्णुजी किसी दूसरे लोक से पृथ्वी पर अवतरित हुए थे। विज्ञान के अनुसार भी ड्यूटेरियम-विष्णु भी आकाशीय पत्थरों से पृथ्वी पर आये है। प्रारम्भ में पृथ्वी पर भारी-जल नहीं था । यह अकाशीय-पत्थर (कोमेट) से पृथ्वी पर अवतरित हुआ है ।

(c)   गीता और बृहस्पतिवार-व्रत कथा के अनुसार विष्णुजी और बृहस्पतिदेव एक ही है। सौरमंडल के 9 ग्रहों में से वृहस्प्तिग्रह (जूपिटर) एक ऐसा ग्रह जो कि 89% हरि-हाइड्रोजन का रुप है। यह ग्रह शेष 7 ग्रहों के योग़ का 2.5 गुना है।  सौरमंडल में ड्यूटेरियम-विष्णु के विराजमान होने का अनुमान, इसी ग्रह से लगाया जाता है। ड्यूटेरियम-विष्णु सबसे अधिक मात्रा में बृहस्पतिग्रह पर ही विराजमान है। यही कारण है कि बृहस्पतिदेव और विष्णु जी को एक मानकर पूजा की जाती है ।

(d)  बृहस्पतिवार-व्रत में केले की पुजा की जाती है और केले में विष्णु के विराजमान होने की बात की गयी है। ड्युटेरियम-विष्णु का NMR स्पेक्ट्रोग्राफी करने पर केले के अकार की आकृति प्राप्त होती है। इस बात को Rode-Like and Banana shaped LCs by means of  Dueteriyam नामक पुस्तक में लिखा गया है। इसके लेखक वेलेंटिया-डेमेंनिसी है। यह पुस्तक 2008 में लिखी गयी थी । यह पुस्तक अमेंजन पर उपलब्ध है ।

(e)   मैंने विष्णु शब्द का व्यक्तिगत व्याख्या की है। विष्णु शब्द  विष और अणु से मिलकर बना है। ड्युटेरियम-विष्णु,  यदि शरीर में 25% तक रहे तो नशा होती है लेकिन यह मात्रा यदि 50% से अधिक हो जाये तो प्राणी की मौत हो सकती है। इसलिये विष्णु रुप का केवल दर्शन करना चाहिये न कि भक्षण । दैत्य लोग देवताओं को निगलने की कोशिश करते थे और मारे जाते थे।

(f)    रचना का कार्य भले ही प्रोटियम-ब्रह्मा वाला रुप करता है लेकिन इस जगत के सभी कणों के निर्माण आदि पर नियंत्रण तो ड्यूटेरियम-विष्णु की ही रहती है। इस बात को साइंस भी मानता है। यही जगत नियंता है।  

 

सत्य सनातन-धर्म के प्रसिद्ध गुरु शंकराचार्य के अनुसार विष्णु का मतलब सर्वत्र विराजमान होने से भी है। विष्णु और महाविष्णु की कथा को अवश्य समझिये ।  इस प्रकार  ड्यूटेरियम-विष्णु, समान्य जल में भी अल्प रुप में विराजमान रहते है। इस प्रकार वह सर्वत्र व्याप्त भी है ।


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